इटावा /जसवंतनगर – गाँव जैनपुर नागर में चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद भागवत में पांच वें बुधवार को राम जन्म ओर कृष्ण जन्म की वंशावली के प्रकारों का प्रसंग सुनाया गया। कथा वाचक मोहिनी शास्त्री ने जब राम जन्म की कथा सुनाई तो श्रोता भाव विभोर हो गए। उन्होंने कहा कि जब अयोध्या में भगवान राम का जन्म होने वाला था, तब समस्त अयोध्या नगरी में शुभ शकुन होने लगे। भगवान राम का जन्म होने पर अयोध्या नगरी में खुशी का माहौल हो गया।
चारों ओर मंगल गान होने लगे। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने भी पृथ्वी लोक पर आकर धर्म की स्थापना की। कथा वाचक ने कहा कि आज का व्यक्ति ईश्वर की सत्ता को मानने से भले ही इंकार कर दे, लेकिन एक न एक दिन उसे ईश्वर की महत्ता को स्वीकार करना ही पड़ता है। संसार में जितने भी असुर उत्पन्न हुए सभी ने ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया और स्वंय भगवान बनने का ढोंग करने लगे, लेकिन जब ईश्वर ने अपनी सत्ता की एक झलक दिखाई तो सभी का अस्तित्व धरा से ही समाप्त हो गया। अधर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन धर्म के मार्ग पर चलने वाले के आगे अधिक समय तक नहीं टिक सकता।
कथा वाचक ने कथा प्रारंभ करते हुए कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा कि जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुनकर पूरा गोकुल झूम उठा। इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है।उन्होंने आगे कहा दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया।प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है। कथा व्यास ने बताया कि वास्तविकता में श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया।कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए ।